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सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा मृत्यु का केस संविधान पीठ को सौंपा


Supreme Court refers plea to allow euthanasia to Constitution bench

लाइलाज बीमारी से पीड़ित शख्स द्वारा मेडिकल उपकरणों की मदद से जीवन को लंबा खींचने से इनकार कर इच्छा मृत्यु की अनुमित देने के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ को सौंप दिया है।

असल में एक याचिका में इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई गई थी। चीफ जस्टिस पी. सदाशिवम की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच ने मंगलवार को कहा कि यह अहम कानूनी मसला है, इसलिए इस पर गहरा विचार और स्पष्टता जरूरी है। इसलिए, इस पर संविधान पीठ में विचार होगा।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुआई वाली बेंच ने इस मामले में विस्तार से बहस के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। इस मामले में अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि लाइलाज बीमारी से ग्रसित शख्स को मेडिकल उपकरणों की सहायता से जिंदा रखने के बजाय उसे इच्छा मृत्यु दिया जाना चाहिए। वहीं सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने इस अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि यह आत्महत्या के समान होगा और भारत में इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती।


याचिकाकर्ता एनजीओ की ओर से दलील दी गई कि जब डॉक्टर इस निष्कर्ष पर पहुंचते हों कि बीमार शख्स ऐसी स्टेज पर पहुंच चुका है कि उसके बचने की संभावना नहीं है, तो ऐसे शख्स को लाइफ सेविंग उपकरणों की मदद लेने से इनकार करने का अधिकार होना चाहिए।

ऐसा नहीं करने से वह शख्स कष्ट ही झेलता है। इस मामले में 2008 में याचिका दायर की गई थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार की हेल्थ मिनिस्ट्री और लॉ मिनिस्ट्री से जवाब मांगा था। केंद्र सरकार की ओर से पेश अडिशनल सॉलिसिटर जनरल सिद्धार्थ लूथरा ने इस याचिका का यह कहते हुए विरोध किया था कि भारतीय समाज में इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।

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